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Tuesday 28 June 2011

दोहे

पूजा खातिर चाहिए सवा रुपैया फ़क्त  |
हुई चवन्नी बंद तो खफा हो गए भक्त ||

कम से कम अब पांच ठौ,  रूपया पावैं पण्डे |
पड़ा चवन्नी छाप का,   नया  नाम  बरबंडे ||

बहुतै खुश होते भये,  सभी  नए भगवान्  |
चार गुना तुरतै हुआ, आम जनों का दान ||

मठ-मजार के नगर में, भर-भर बोरा-खोर |
भ'टक साल में भेजते, सिक्के सभी बटोर ||  |

भ'टक-साल सिक्का गलत, मिटता वो इतिहास |
जो काका के स्नेह सा,  रहा  कलेजे  पास ||

अन्ना के विस्तार को,  रोकी ये सरकार |
चार-अन्ने को लुप्त कर, जड़ी भितरिहा मार ||

बड़े  नोट  सब  बंद हों, कालेधन  के  मूल |
मठाधीश होते खफा, तुरत गयो दम-फूल ||

महाप्रभु  के  कोष   में,  बस  हजार  के नोट |
सोना चांदी-सिल्लियाँ,   रखें नोट कस छोट ||

बिधि-बिधाता जान लो, होइहै कष्ट अपार |
ट्रक- ट्रैक्टर से ही बचे, गर झूली सरकार ||

दोहे-- प्रगति लोक-हित

चाहे प्रगति, लोक-हित, प्रतियोगी कुछ और |
खाने - पीने - मौज   के,    गए   पुराने   दौर ||  

प्रतियोगी भी स्वस्थ हों, मन में  रखें न द्वेष |
गला काट प्रतियोगिता, टालें कुटिल कलेश ||

उत्पादों  की  श्रेष्ठता ,  हो   कोशिश  भरपूर |
टांग खींचने से परन्तु , खुद  को  रक्खे दूर ||

होता   धंधा   खेल  में  , धंधे   में   हो  खेल |
ये गन्दी प्रतियोगिता, प्रगति  रही  धकेल  ||

उसकी शर्ट सफ़ेद  खुब, अपनी पीली  देख |
निज रेखा बढ़ न  सकी,  काटें  लम्बी  रेख |
                संसाधन-खोर
संसाधन का कर रहे, गर बेजा उपयोग |
महंगाई पर चुप रहें , वे  दुष्कर्मी लोग ||

               हरामखोर 
भाग्य  भरोसे  छोड़ते, सारे बिगड़े-काम |
खाते-पीते मौज से, जिनके लगी हराम ||  
             
                दारु-खोर 
बोतल में पानी  लिए, भटकें चारों ओर |
गला सूखता प्यास से,  ढूंढें  दारु-खोर ||  
            
               आदमखोर
अन्ध-मोड़ पर छोड के, भागा पापी घोर |
थे  पैरों  के  दो निशाँ,  पूरा आदमखोर || 

               रिश्वत-खोर
नीचे से  ही खाय यू ,  खावै मां उस्ताद |
सड़ी गली विष्टा करे,   दायें-बाएं पाद ||     

             "बिदेशी-बैंक"

घोंघे करके मर गए, जोंकों संग व्यापार |
खून चूस भेजा किये, सात समंदर पार ||

लील रहा तब से पड़ा, दुष्ट अघासुर कोष |
जोंकों को कोंसे उधर, या घोंघो का दोष || 

                  " वंशवाद"
कंगारू सी कर रही बावन हफ्ते मौज  |
बेटे को थैली धरे, लीड कराती फौज ||

बेटा  बैठा  गोद  में, चलेगा कैसे  वंश |
वंशवाद  की  देवकी, मारे समया-कंस || 

                "बड़ी-कम्पनी" 
केंचुआ दो टुकड़े हुआ, धरती धरे धकेल |
बढ़ी  उर्वरा  शक्ति से,   खूब  बटोरें  तेल ||  

रात  चौगुनी वृद्धि हो, धीरू-धीरज-धीर |
राज-काज के राज से, बाढ़े  बहुतै  वीर ||


                               नया-प्रेम
प्रेम-क्षुदित व्याकुल जगत, मांगे प्यार अपार |
जहाँ  कहीं   देना   पड़े,   कर   देता   है   मार  ||


आम  सभी  बौरा  गए,  खस-खस  होते ख़ास |
दुनिया  में  रविकर  मिटै, मिष्ठी-स्नेह-सुबास || 


सरपट  बग्घी  भागती,  बड़े  लक्ष्य  की ओर |
घोडा  चाबुक  खाय  के,  लखे  विचरते  ढोर || 


चले  हुए   नौ-दिन   हुए,  चला  अढ़ाई  कोस |  
लोकपाल का करी शुभ्र, तनिक होश में पोस ||  करी  =  हाथी

 
कुर्सी   के   खटमल   करें,  मोटी-चमड़ी  छेद |
मर  जाते  अफ़सोस  पर,  पी के खून सफ़ेद  ||  

सोखे  सागर  चोंच   से, छोट टिटहरी नाय |
इक-अन्ने से बन रहे, रुपया हमें दिखाय ||


सौदागर   भगते   भये,   डेरा  घुसते   ऊँट |
जो लेना वो  ले चले,   जी-भर  के  तू  लूट ||


कछुआ  -  टाटा   कर   रहे ,   पूरे   सारोकार | 
खरगोशों   की   फौज  में,  भरे पड़े  मक्कार ||


कोशिश  अपने  राम  की,  बचा  रहे  यह  देश |
सदियों  से  लुटता  रहा,   माया  गई  विदेश  ||


कोयल  कागा  के  घरे,   करती  कहाँ   बवाल  |
चाल-बाज चल न सका,  कोयल चल दी चाल ||


प्रगति   पंख   को   नोचता,  भ्रष्टाचारी   बाज |
लेना-देना   क्यूँ   करे ,  सारा  सभ्य  समाज  || 


रिश्तों   की   पूंजी  बड़ी , हर-पल संयम *वर्त |     *व्यवहार कर  
पूर्ण-वृत्त   पेटक  रहे ,  असली  सुख   *संवर्त ||     *इकठ्ठा



            21 वीं शती 


 पति परमेश्वर की तरह, छवि आदर्श बनाय |
कन्धे पर बन्दूक धर, पीछे   खड़ीं   लुकाय ||

त्यागी  और  महान  हैं, बिलकुल न बेईमान |  
पति की सम्पत्ति पुत्र  का, देती  नेक बयान ||

प्रगति  पंख  को  नोचता,  भ्रष्टाचारी   बाज |
लेना-देना  क्यूँ करे ,  सारा  सभ्य  समाज  ||

बैंकों  में  खाता  खुला,  खता कहाँ  से  मोर |
बड़े मियां छोटे मियां,  जानें  रिश्वत-खोर ||

स्वामी, दत्ता अमल दा, जेठ मलानी लोग |
के जी बी, एक्सप्रेस भी, करें भयंकर ढोंग ||

गर इतना धन है जमा, जाऊं  इटली भाग |
पहचाने दुर्भाग्य  निज, लगा  रहे  जो  दाग || 

लिश्तेंस्ती से  बैंक  का, हमने  सुना  न नाम | 
कौन-कौन  से  केश  का,  पैसा  जमा तमाम ||


हत्यारों  पर  भी  रहम,  बच्चों  में   पुरजोर |
मानहानि के  केश में,  रही  रूचि  न   मोर ||


कश्मीर (1947)

चाचा  चालें चल  चुके, चौपट  चम्प-गुलाब |
शालीमार-निशात सब, धूल-धूसरित ख़्वाब ||

चारों  दिशा  उदास  हैं,  फैला  है आतंक |
जिम्मेदारी कौन ले,   मारे  शासन  डंक ||

                 भ्रष्टाचार         

    भूमंडलीय फिनोमिना (1983 )


माता  के  व्यक्तव्य से,  बाढ़ा हर दिन लोभ |
भ्रष्टाचारी  देव  को,   चढ़ा  रहे  नित   भोग  ||

पानी  ढोने का    करे,  जो बन्दा  व्यापार  |
मुई प्यास कैसे भला, सकती उसको मार ||

काजल की हो कोठरी, कालिख से बच जाय |
हो  कोई  अपवाद  गर , तो उपाय बतलाय    || 

             मिस्टर क्लीन (1989)
माता के उपदेश को , भूले मिस्टर क्लीन,
राज    हमारा   बनेगा ,  भ्रष्टाचार विहीन |
भ्रष्टाचार   विहीन,  नहीं  मैं  माँ  का बेटा,
सारे  दागी  लोग ,  अगरचे   नहीं  लपेटा |
पर"रविकर"आदर्श, बड़ा वो चले दिखाने |
दागै लागे तोप,  उन्हीं  पर  कई  सयाने  ||

Sunday 26 June 2011

मेरी विनम्रता लगे दीनता,


अपनी बाइक  को  कहें  पुष्पक,  मेरी कार   सरकारी परिवहन |

उनकी मदिरा कहलाये सोमरस, मेरा प्याज भी खाना दुर्व्यसन |

मेरा  आदर-भाव  लगे  चापलूसी, उनकी  हिकारत  भी  नमन |

मेरे  चुटकुले  करें  बदतमीजी, उनका  क़त्ल करना  भी टशन |

मेरी ठिठोली गम्भीर छेड़-छाड़, उनका व्यभिचार भी बड़प्पन |

मेरी  पूजा    लगे  ढकोसला,   उधर  गालियों  से  हो  प्रवचन |

मेरे  चूल्हे से  फैले  प्रदूषण, उनकी  चिता  भी  जले तो हवन |

अफवाह उड़े तो तेज तूफ़ान, उनका तहलका भी शीतल पवन |

मेरी विनम्रता   लगे दीनता,   बोल्डनेस है   उनका अकड़पन |

मेरी  हकीकत  होती  घमंड , उनके  कमीनेपन में  भी  वजन ||

 

मोहक छटा

दीखते   हैं   मुझे  सब  दृश्य  अति-मनोहारी,
कुसुम-कलिकाओं  से   गंध  तेरी  आती  है  |

कोकिला की कूक में भी स्वर की सुधा सुन्दर,
प्यार  की  मधुर  टेर    सारिका   सुनाती   है |

देखूं शशि छबि जब, निहारूं  अंशु सूर्य के -
मोहक छटा  उसमे      तेरी ही दिखाती  है |

कमनीय  कंज  कलिका  विहस  'रविकर'
पावन  रूप-धूप  का  सुयश  फैलाती  है ||