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Friday 30 September 2011

चने लोहे = दुखी-दोहे

पति-अनुनय  को कह धता, कुपित होय तत्काल |
बरछी-बोल  कटार-गम, दरक जाय मन-ढाल ||

पत्नी पग-पग पर परे,  पति पर न पतियाय |
श्रीमन का मन मन्मथा, श्रीमति मति मटियाय ||

हार गले की फांस है, किया विरह-आहार |
हारहूर  से  तेज  है,  हार   हूर  अभिसार ||
हारहूर=मद्य               आहार-विरह=रोटी के लाले
 
 चमकी चपला-चंचला , छींटा छेड़ छपाक |
 तेज तड़ित तन तोड़ती,  तददिन तमक तड़ाक |

मुमुक्षता मुँहबाय के, माया मोह मिटाय |
मृत्यु-लोक से जाय के, महबूबा चिल्लाय ||
 मुमुक्षता=मुक्ति की अभिलाषा का भाव 

पन-घट   पर का    घट-पना,  परकाकर   के   खूब |
घरजाया  -  घोटक  -  घटक,  डिंगल - डीतर  डूब ||
डिंगल=दूषित नीच अधम  
डीतर=पीछा करने वाला
परका=चस्का लगा
घरजाया=घर का दास
घोटक= घोड़ा
घटक=बिचौलिया, विवाह सम्बन्ध निश्चित कराने वाला |

Thursday 22 September 2011

शुभकामनाएं

संदीप जी (जाट देवता ) के जन्म दिन पर 
समर्पित रचना

अक्कड़-बक्कड़  बम्बे-बो, अस्सी    नब्बे    पूरे    सौ ||

अक्षय  और  अनंत  ऊर्जा  का, शाश्वत   भण्डार   सूर्य  हो |
मत्स्य-भेदते द्रुपद-सुता के, स्वप्नों के प्रिय-पार्थ-पूर्य हो || 

घुमक्कड़ी   के   संदीपक  हो,  मित्रों  ने  पाया  उजियारा |
परिक्रमा  सारी  दुनिया  की, दुर्गम-दुर्धुष  सा  व्रत  धारा ||

पञ्चम-स्वर की चार-श्रुति में, तीजी श्रुति संदीपन से तुम | 
सागर सर नद तट कौतूहल, मठमंदिर वन-उपवन से तुम ||


पर्वत  के  उत्तुंग-शिखर  पर, मानवता  का  ध्वज  फहराते |
तप्त-मरुस्थल  पर  गर्वीले, अपने  विजयी  कदम  बढाते ||

प्रकृति सुंदरी के दर्शन हित, निकल पड़ें जैसे  फटती पौ |
अक्कड़ - बक्कड़  बम्बे-बो,  अस्सी    नब्बे    पूरे    सौ ||

Saturday 17 September 2011

व्यर्थ हमने सिर कटाए















 
पंजाब एवं  बंग आगे,  कट चुके हैं  अंग आगे|
लड़े  बहुतै  जंग  आगे,  और  होंगे  तंग  आगे|
हर गली तो बंद आगे, बोलिए, है क्या उपाय ??
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !

सर्दियाँ ढलती  हुई हैं,  चोटियाँ  गलती हुई हैं |
गर्मियां  बढती हुई हैं,  वादियाँ  जलती हुई हैं |
गोलियां चलती हुई हैं, हर तरफ आतंक छाये --
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !
Image of Akhand Bharat as a goddess
सब दिशाएँ  लड़ रही हैं,   मूर्खताएं  बढ़ रही हैं  |

नियत नीति को बिगाड़े, भ्रष्टता भी समय ताड़े |
विषमतायें नित उभारे, खेत  को  ही मेड खाए |
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !

 मंदिरों में मकड़ जाला,  हर पुजारी  चतुर लाला | 
 भक्त की बुद्धि पे ताला,  *गौर  बनता  दान  काला |  *सोना
 जापते  रुद्राक्ष  माला,   बस  पराया  माल  आए--
 व्यर्थ हमने सिर कटाए,  बहुत ही अफ़सोस, हाय !

 

हम फिरंगी से  लड़े  थे  , नजरबंदी  से  लड़े   थे |
बालिकाएं मिट रही हैं , गली-घर में  लुट रही हैं  |
होलिका बचकर निकलती, जान से प्रह्लाद जाये --
व्यर्थ हमने सिर कटाए,  बहुत ही अफ़सोस, हाय !

 

बेबस, गरीबी रो रही है, भूख, प्यासी सो रही है  |
युवा पहले से पढ़ा पर , ज्ञान  माथे  पर चढ़ाकर |   
वर्ग  खुद  आगे  बढ़ा  पर ,  खो चुका संवेदनाएं |
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !

है  दोस्तों से यूँ घिरा,   न पा सका उलझा सिरा |
पी रहा वो मस्त मदिरा, यादकर के  सिर-फिरा |

गिर गया कहकर गिरा,   भाड़  में  ये  देश जाए|
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय ! 


त्याग जीवन के सुखों को,  भूल  माता  के  दुखों को |
प्रेम-यौवन से बिमुख हो, मातृभू हो स्वतन्त्र-सुख हो |

क्रान्ति की  लौ  थे  जलाए,  गीत  आजादी  के  गाये |
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय ! 

Tuesday 13 September 2011

पर सरकार बचा ले कोई

आलू   यहाँ   उबाले   कोई  |
बना  पराठा  खा  ले  कोई ||

तोला-तोला ताक तोलते,
सोणी  देख  भगा  ले कोई |

जला दूध का छाछ फूंकता
छाछे जीभ जला ले कोई |

जमा शौक से  करे खजाना
आकर  उसे  चुरा ले कोई ||

लेता  देता  हुआ  तिहाड़ी
पर सरकार बचा ले कोई ||

"रविकर" कलम घसीटे नियमित
आजा  प्यारे  गा  ले  कोई ||

Sunday 11 September 2011

खींचो खुदकी रेख, कहाँ ले खींचे लक्ष्मण

File:Ravi Varma-Ravana Sita Jathayu.jpgलक्ष्मण रेखा लांघती, लिए हथेली जान 
बीस निगाहें घूरती, खुद रावण पहचान 



खुद रावण पहचान, नहीं ये तृण से डरता
मर्यादा  को  भूल, हवस बस पूरी  करता 




संगीता की सीख, ठीक पहचानो रावण

खींचो खुदकी रेख, कहाँ ले खींचे लक्ष्मण

Friday 2 September 2011

अन्ना बड़े महान :

कद - काठी  से शास्त्री, धोती - कुरता श्वेत |
बापू  जैसी  सादगी,  दृढ़ता  सत्य  समेत ||

निश्छल  और  विनम्र  है, मंद-मंद मुस्कान |
मितभाषी मृदु-छंद है, उनका हर व्याख्यान ||

अभिव्यक्ति रोचक लगे, जागे मन विश्वास |  
बाल-वृद्ध-युवजन जुड़े, आस छुवे आकाश ||

दूरदर्शिता  की  करें,  कड़ी   परीक्षा  पास |
जोखिम से डरते नहीं, नहीं अन्धविश्वास ||

सद-उद्देश्यों  के  लिए, लड़ा  रहे  वे जान |
सिद्ध-पुरुष की खूबियाँ, अन्ना बड़े महान ||
http://dineshkidillagi.blogspot.com/