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Monday, 21 November 2011

भगवती शांता परम (मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सहोदरी)

 सर्ग-२ 

सम्पूर्ण

 भाग-1

महारानी कौशल्या-महाराज दशरथ  
और 
रावण के क्षत्रप 
सोरठा
रास रंग उत्साह,  अवधपुरी में खुब जमा |
उत्सुक देखे राह, कनक महल सजकर खड़ा ||

चौरासी विस्तार, अवध नगर का कोस में |
अक्षय धन-भण्डार,  हृदय कोष सन्तोष धन |
पांच कोस विस्तार, कनक भवन के अष्ट कुञ्ज |
इतने ही थे द्वार, वन-उपवन बारह सजे ||

शयन केलि श्रृंगार,  भोजन और स्नान कुञ्ज |
झूलन कुञ्ज बहार, अष्ट कुञ्ज में थे प्रमुख ||

चम्पक विपिन रसाल, पारिजात चन्दन महक |
केसर कदम तमाल, नाग्केसरी वन विचित्र ||


लवंगी-कुंद-गुलाब, कदली चम्पा सेवती |
  वृन्दावन लघुबाग, नेवर जूही माधवी || 

घूमें सुबहो-शाम, कौशल्या दशरथ मगन |
इन्द्रपुरी सा धाम, करें देवता ईर्ष्या ||

रावण के उत्पात, उधर झेलते साधुजन |
लगा के बैठा घात, कैसे रोके शत्रु-जन्म ||

मायावी इक दास, आया विचरे अवधपुर |
करने सत्यानाश, कौशल्या के हित सकल ||

चार दासियों संग, कौशल्या झूलें मगन |
उपवन मस्त अनंग, मायावी आया उधर ||

धरे सर्प का रूप, शाखा पर जाकर डटा |
पड़ी तनिक जो धूप, सूर्यदेवता ताड़ते ||

महा पैतरेबाज, सिर पर वो फुफ्कारता |
दशरथ सुन आवाज, शब्द-भेद कर मारते ||  

रावण के षड्यंत्र, यदा कदा होते रहे |
जीवन के सद-मंत्र, सूर्य-वंश आगे चला ||

गुरु वशिष्ठ का ज्ञान, सूर्य देव के तेज से | 
अवधपुरी की शान, सदा-सर्वदा बढ़ रही ||

रावण रहे उदास, लंका सोने की बनी  |
करके कठिन प्रयास, धरती पर कब्ज़ा करे ||

जीते जो भू-भाग, क्षत्रप अपने छोड़ता |
 निकट अवध संभाग, खर दूषण को सौंपता || 

खर दूषण बलवान, रावण सम त्रिशिरा विकट |
डालें नित व्यवधान, गुप्त रूप से अवध में ||

त्रिजटा शठ मारीच, मठ आश्रम को दें जला |
भूमि रक्त से सींच, हत्या करते साधु की || 

कुत्सित नजर गढ़ाय, ताकें राज्य अवध  को |
 खबर रहे पहुँचाय, आका लंका-धीश को ||

गए बरस दो बीत, कौशल्या थी मायके |
पड़ी गजब की शीत, सूर्य छुपे सप्ताह भर ||

जलने लगे अलाव, जगह-जगह पर राज्य में |
दशरथ यह अलगाव, सहन नहीं कर पा रहे ||

भेजा चतुर सुमंत्र, विदा कराने के लिए |
रचता खर षड्यंत्र, कौशल्या की मृत्यु हित ||



 असली घोडा मार, लगा स्वयं रथ हाँकने ||
कौशल्या असवार, अश्व छली लेकर भगा ||

धुंध भयंकर छाय, हाथ न सूझे हाथ को |
रथ तो भागा जाय, मंत्री मलते हाथ निज ||

कौशल्या हलकान, रथ की गति अतिशय विकट |
रस्ते सब वीरान, कोचवान ना दीखता ||

समझ गई हालात, बंद पेटिका सुमिर कर |
ढीला करके गात, जगह देखकर कूदती ||

लुढ़क गई कुछ दूर, झाडी में जाकर फंसी ||
चोट लगी भरपूर, होश खोय बेसुध पड़ी ||

मंत्री चतुर सुजान, दौडाए सैनिक सकल |
देखा पंथ निशान, इक सैनिक ने भाग्य से ||

लाया वैद्य बुलाय, सेना भी आकर जमी |
नर-नारी सब आय, हाय-हाय करने लगे ||

खर भागा उत जाय, मन ही मन हर्षित भया |
अपनी सीमा आय, रूप बदल करके रुका ||

रथ खाली अफ़सोस, गिरा भूमि पर तरबतर |
रही योजना ठोस, बही पसीने में मगर ||

रानी डोली सोय, अर्ध-मूर्छित लौटती |
वैद्य रहे संजोय, सेना मंत्री साथ में ||

दशरथ उधर उदास, देरी होती देखकर |
भेजे धावक ख़ास, समाचार लेने गए ||
सर्ग-२
भाग-2
          रावण का गुप्तचर           
दोहे
असफल खर की चेष्टा, होकर के गमगीन |
लंका जाकर के कहे,  चेहरा लिए मलीन ||

रावण शाबस बोलता, काहे  होत उदास |
कौशल्या के गर्भ का, करके पूर्ण विनाश ||
File:Demon Yakshagana.jpg
खर बोला भ्राता ज़रा, खबर कहो समझाय |
यह घटना कैसे  हुई, जियरा तनिक जुड़ाय ||

रानी रथ से कूद के, खाय चोट भरपूर |
तीन माह का भ्रूण भी, हुआ स्वयं से चूर ||

खर के संग फिर गुप्तचर, भेजा सागर पार |
वह सुग्गासुर जा जमा, शुक थे जहाँ अपार ||
हरकारे वापस इधर, आये दशरथ पास |
घटना सुनकर हो गया, सारा अवध उदास ||

गुरुकुल में शावक मरा, हिरनी आई याद |
अनजाने घायल हुई, चखा दर्द का स्वाद ||

गुरु वशिष्ठ की अनुमती, तुरत चले ससुरार |
कौशल्या को देखते, नैना छलके प्यार ||

संक्रान्ति से सूर्य ने, दिए किरण उपहार |
अति-ठिठुरन थमने लगी, चमक उठा संसार ||

दवा-दुआ से हो गई, रानी जल्दी ठीक |
दशरथ के सत्संग से, घटना भूल अनीक ||

विदा मांग कर आ गए, राजा-रानी साथ |
चिंतित परजा झूमती, होकर पुन: सनाथ ||
http://www.shreesanwaliyaji.com/blog/wp-content/uploads/2011/02/vasant-panchami-saraswat-sanwaliyaji_bhadsoda.jpg
धीरे धीरे सरकती, छोटी होती रात |
 हवा बसंती बह रही, जल्दी होय प्रभात |

पीली सरसों फूलती, हरे खेत के बीच |
 कृषक निराई कर रहे, रहे खेत कुछ सींच ||
तरह तरह की जिंदगी, पक्षी कीट पतंग |
पशू प्रफुल्लित घूमते, नए सीखते ढंग ||

कौशल्या रहती मगन, वन-उपवन में घूम ||
धीरे धीरे भूलती, गम पुष्पों को चूम ||


कौशल्या के गर्भ की, कैसे रक्षा होय |
दशरथ चिंता में पड़े, आँखे रहे भिगोय ||

गिद्धराज की तब उन्हें, आई बरबस याद |
तोते कौवे की बढ़ी, महल पास तादाद ||

कौशल्या जब देखती, गिद्धराज सा गिद्ध |
याद जटायू को करे, कार्य करे जो सिद्ध ||

यह मोटा भद्दा दिखे, आत्मीय वह रूप |
यह घृणित हरदम लगे, उसपर स्नेह अनूप ||


गिद्ध दृष्टि रखने लगा, बदला बदला रूप |
अलंकार त्यागा सभी, बनकर रहे  कुरूप ||



केवल दशरथ जानते, होकर रहें सचेत |
अहित-चेष्टा में लगे, खर-दूषण से प्रेत ||



सुग्गासुर अक्सर उड़े, कनक महल की ओर |
देख जटायू को हटे, हारे मन का चोर ||



एक दिवस रानी गई, वन रसाल उल्लास |
सुग्गासुर आया निकट, बाणी मधुर सुभाष || 



माथे टीका शोभता, लेता शुक मनमोह |
ऊपर से अतिशय भला, मन में राखे द्रोह ||


 


रानी वापस आ गई, आई फिर नवरात |
नव-दुर्गा को पूजती, एक समय फल खात ||



स्नानकुंज में रोज ही, प्रात: करे नहान |
भक्तिभाव से मांगती, माता सम सन्तान ||





सुग्गासुर की थी नजर, आ जाता था पास |
 स्वर्ण-हार हारक उड़ा, झटपट ले आकाश ||
gold necklace
सुनकर चीख-पुकार को, वो ही भद्दा गिद्ध ||
शुक के पीछे लग गया, होकर अतिशय क्रुद्ध ||



जान बचाकर शुक भगा, था पक्का अय्यार ||
छुपा सुबाहु के यहाँ, पीछे छोड़ा हार ||



वापस पाकर हार को, होती हर्षित खूब |
राजा का उपहार वो, गई प्यार में डूब ||
Jawalamukhi Kanya Puja
 नवमी को व्रत पूर्ण कर, कन्या रही खिलाय  |
 चरण धोय कर पूजती, पूरी-खीर जिमाय ||



सूर्यदेव का ताप भी, दारुण होता जाय |
पाँव इधर भारी हुए, रानी फिर सकुचाय ||
सर्ग-2 भाग-3 
जन्म-कथा  
कौशल्या भयभीत हो, ताके संबल एक |
रक्षा होवे भ्रूण की,  दीखे शत्रु  अनेक ||

सारे देवी-देवता, चिंतित रही मनाय |
चार दिनों से अनमयस्क, बैठे मन्दिर जाय  ||

जीवमातृका  वन्दना, माता  के  सम पाल |
जीवमंदिरों को सुगढ़, करती सदा संभाल ||
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/6/61/Stone_sculpt_NMND_-20.JPG 
शिव और जीवमातृका
धनदा  नन्दा   मंगला,   मातु   कुमारी  रूप |
बिमला पद्मा वला सी, महिमा अमिट-अनूप ||


माता  करिए  तो  कृपा, कोई भी तो  एक |
 शत्रु-दृष्टि से बच रहे, बच्चा मेरा नेक ||

 संध्या को रनिवास में, रानी बैठी रोय |
उच्छवासें भरती रही, अँसुवन मुखड़ा धोय ||

दशरथ को दरबार में, हुई घरी भर देर |
कौशल्या ना दीखती, कमरे में अंधेर ||

तभी सुबकने की पड़ी, कानों में आवाज |
दासी को आवाज दे, पूँछें दशरथ राज ||

हुआ उजाला कक्ष में, मुखड़ा लिए मलीन |
रानी लेटी भूमि पर, अतिशय वह गमगीन ||


mashraqi-dulhan
राजा विह्वल हो गए, गए भूमि पर बैठ |
रानी को पुचकारते, होय प्रेम की पैठ ||

 बोलो रानी बेधड़क, खोलो मन के राज |
 कौन रुलाया है तुम्हें, किया कौन नाराज ?

मद्धिम स्वर फिर फूटता, हिचकी होती तेज |
अपने बच्चे को भला, कैसे रखूं सहेज ||

राजा सुनकर हर्ष से, रानी को लिपटाय |
कहते चिंता मत करो, करूं सटीक उपाय ||

अगली प्रात: वे गए, गुरु वशिष्ठ के पास |
थे सुमंत भी साथ में, मंत्री सबसे ख़ास ||

बनी योजना इस तरह, दुश्मन धोखा खाय ||
रानी के इस गर्भ को, राखे नजर बचाय ||

अगले दिन दरबार में, आया इक सन्देश |
कौशल्या की मातु को, पीड़ा स्वास्थ-कलेस ||

डोली सजकर हो गई, जल्दी ही तैयार |
छद्म वेश में सेविका, बैठी इक हुशियार ||



वक्षस्थल पर झूलता, वही पुराना हार |
जिसको लेकर था भगा, सुग्गासुर अय्यार ||

सेना के संग हो विदा, डोली चलती जाय |
गिद्धराज ऊपर उड़े, पंखों को फैलाय ||


WEDDING BRIDAL PALKI
अभिमंत्रित कर महल को, कौशल्या के पास |
कड़ी सुरक्षा में रखा, दास-दासियाँ ख़ास ||

खर-दूषण के गुप्तचर, छोड़े अपनी खोह |
डोली के पीछे लगे, लेने को तब टोह ||

छद्म-वेश में माइके, धर कौशल्या रूप |
रानी हित दासी करे, अभिनय सहज अनूप ||

वर्षा-ऋतु फिर आ गई, सरयू बड़ी अथाह |
दासी उत्तर में रही, दक्षिण में उत्साह ||

देख सकें औलाद को, हुई बलवती चाह |
दशरथ  सबपर  रख  रहे, चौकस कड़ी निगाह ||



सात मास बीते मगर, गोद-भराई भूल |
कनक महल रक्षित रहा, रानी के अनुकूल ||

नवरात्रि के पर्व में, परजा में उल्लास |
कौशल्या कर न सकी, पर अबकी उपवास ||
शरद पूर्णिमा बीतती, अमृत वर्षा होय |
रानी आँगन में जमी, काया रही भिगोय ||

धीरे धीरे सर्दियाँ , रही धरा को घेर |
शीत लहर चलने लगी, यादें रही उकेर ||

पीड़ा झूठे प्रसव की, होंठ रखे  वो भींच |
रानी सिसकारी भरे, जान न पावे नींच ||
 
रानी हर दिन टहलती, करती  नित व्यायाम |
पौष्टिक भोजन खाय के, करे तनिक आराम ||
कोसलपुर में उस तरफ, दासी का वह खेल |
खर-दूषण का गुप्तचर, रहा व्यर्थ ही झेल ||

शुक्ल फाल्गुन पंचमी, मद्धिम बहे बयार |
सूर्यदेव सिर पर जमे, ईश्वर का आभार ||

पुत्री आई महल में, कौशल्या की गोद |
राज्य ख़ुशी से झूमता, छाये मंगल-मोद ||

एक पाख के बाद में, खबर पाय दश-शीस |
खर दूषण को डांटता, सुग्गा सुर पर रीस ||


कन्या के इस जन्म से, रावण पाता चैन |
चेतो क्षत्रपगण सभी, निकसे तीखे बैन || 

छठियारी में सब जमे, पावें सभी इनाम |
स्वर्ण हार पाए वहां, दासी का शुभ काम ||

मालिश करने के लिए, आती थी इक धाय |
छूते ही इक पैर को, कन्या खुब अकुलाय ||


कौशल्या ने वैद्य को, आखिर लिया बुलाय |
जांच परख के बाद में, वैद्य रहा सकुचाय ||

एक पैर में दोष है, कन्या होय अपंग |
सुनकर कडुवे वचन को,  कौशल्या थी दंग ||


दूसरा सर्ग समाप्त

Tuesday, 15 November 2011

भगवती शांता परम (मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सहोदरी बहन )



Om 


सर्ग-1 
भाग-1 
सोरठा  
 वन्दऊँ श्री गणेश, गणनायक हे एकदंत |
जय-जय जय विघ्नेश, पूर्ण कथा कर पावनी ||1||
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiESxEbqwnLALv3ETh-NJqVHOVeRLsVaPpw8TkCN2fDqLWeJ8dPRXrrIHVNdrvzx-BPlItrrKHPvg7CQ0ptujoLSiehAQox4vf-wAvAd59lY2kPj5BzcNadniyl6lvXCP4TCVJXKSZu8tc/s1600/shree-ganesh.jpg
वन्दऊँ गुरुवर श्रेष्ठ, जिनकी किरपा से बदल,
यह गँवार ठठ-ठेठ, काव्य-साधना में रमा ||2||

गोधन को परनाम , परम पावनी नंदिनी |
गोकुल मथुरा धाम, गोवर्धन को पूजता ||3||
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/8/8f/Ghaghra-River.png
वेद-काल का साथ, पावन सिन्धु सरस्वती |
ईरानी हेराथ, सरयू ये समकालिनी ||4||

राम-भक्त हनुमान,  सदा विराजे अवधपुर |
कर सरयू अस्नान, मोक्ष मिले अघकृत तरे ||5||
करनाली / घाघरा नदी का स्रोत्र 
करनाली का स्रोत्र, मानसरोवर के निकट |
करते जप-तप होत्र, महामनस्वी विचरते ||6||
File:Nepal map.png
क्रियाशक्ति भरपूर, पावन भू की वन्दना |
राम भक्ति में चूर, मोक्ष प्राप्त कर लो यहाँ ||7||
करनाली / घाघरा नदी के स्रोत्र  के पास मान-सरोवर


सरयू अवध प्रदेश, दक्षिण दिश में बस रहा |
यह विष्णु सन्देश, स्वर्ग सरीखा दिव्यतम ||8||


पूज्य अयुध  भूपाल, रामचंद्र के पूर्वज |
गए नींव थे डाल, बसी अयोध्या पावनी ||9||
Janmabhoomi
राम-कोट 
माया मथुरा साथ, काशी कांची अवंतिका |
महामोक्ष का पाथ, श्रेष्ठ अयोध्या द्वारिका ||10||

अंतरभू  प्रवाह, सरयू सरसर वायु सी
संगम तट निर्वाह,  पूज घाघरा शारदा ||11||
http://www.pilgrimageindia.net/hindu_pilgrimage/images/ayodhya1.jpg 
सरयू जी 
पुरखों का इत वास, तीन कोस बस दूर है |
बचपन में ली साँस, यहीं किनारे खेलता ||12||


परिक्रमा श्री धाम, चौरासी  कोसी  मिले |
पटरंगा मम ग्राम, होय सदा हर फाल्गुन ||13||


बाबा कालीचरण, परबाबा बालमुकुन्द |
'रविकर' का अवतरण,लल्लू राम की सन्तति ||14||


सहोदरी छह बहन, पुत्री मम तनु-मनु प्रिये |
कहूँ कथा अथ गहन, सहोदरी श्री राम की ||15||


थे दशरथ महराज, सूर्यवंश के तिरसठे |
रथ दुर्लभ अंदाज, दशों दिशा में हांक लें ||16||
File:Parijat-tree-at-Kintoor-Barabanki-002.jpg 
पारिजात (किन्नूर)
पटरंगा से 3 कोस  
पिता-श्रेष्ठ 'अज' भूप, असमय स्वर्ग सिधारते |
 निकृष्ट कथा कुरूप, चेतो माता -पिता सब ||17||


सर्ग-1 
भाग-२ 
दशरथ बाल-कथा --



aish
दोहा
इंदुमती के प्रेम में, भूपति अज महराज |
लम्पट विषयी जो हुए, झेले राज अकाज ||1||

गुरु वशिष्ठ की मंत्रणा, सह सुमंत बेकार |
इंदुमती के प्यार ने, दूर किया  दरबार ||2||




क्रीड़ा सह खिलवाड़ ही, परम सौख्य परितोष |
सुन्दरता पागल करे, मानव का क्या दोष ||3||


अति सबकी हरदम बुरी, खान-पान-अभिसार |
क्रोध-प्यार बडबोल से,  जाय  जिंदगी  हार ||4||
 
झूले  मुग्धा  नायिका, राजा  मारें  पेंग |
वेणी लागे वारुणी,  दिखा रही वो  ठेंग ||5||

राज-वाटिका  में  रमे, चार पहर से आय |
आठ-मास के पुत्र को,  दुग्ध पिलाती धाय ||6||

नारायण-नारायणा,  नारद  निधड़क  नाद |
अवधपुरी का आसमाँ, स्वर्गलोक के बाद ||7||

वीणा से माला गिरी, इंदुमती पर  आय |
ज्योत्सना वह अप्सरा, जान हकीकत जाय ||8||

एक पाप का त्रास वो, यहाँ रही थी भोग |
स्वर्ग-लोक नारी गई, अज को परम वियोग ||9||

माँ का पावन रूप भी, सका न उसको रोक |
आठ माह के लाल को, छोड़ गई इह-लोक ||10||
विरह वियोगी महल में, कदम उठाया गूढ़ |
भूल पुत्र को कर लिया, आत्मघात वह मूढ़ ||11|

माता की ममता छली, करता पिता अनाथ |
रोय-रोय हारा शिशू , पटक-पटक के माथ ||12||

क्रियाकर्म  होता  रहा, तेरह दिन का शोक |
अबोध शिशु की मुश्किलें, रही थी बरछी भोंक ||13||  

आंसू बहते अनवरत, गला गया था बैठ |
राज भवन में थी सदा, अरुंधती की पैठ ||14|

पत्नी पूज्य वशिष्ठ की, सादर उन्हें प्रणाम |
 एक मास तक पालती, माता सम अविराम ||15||
File:Batu Caves Kamadhenu.jpg 
नंदिनी की माँ कामधेनु 
 महामंत्री थे सुमंत, गए गुरू के पास |
लालन-पालन की किया, कुशल व्यवस्था ख़ास ||16||

महागुरू मरुधन्व के, आश्रम में तत्काल |
 गुरु-आज्ञा पा ले गए, व्याकुल दशरथ बाल ||17||

जहाँ नंदिनी पालती, बाला-बाल तमाम |
दुग्ध पिलाती प्रेम से, भ्रातृ-भाव  पैगाम ||18||

माँ कामधेनु की पुत्री, करती इच्छा पूर |
देवलोक की नंदिनी, इस आश्रम की नूर ||19||
सर्ग-१
भाग-३
दक्षिण कोशल सरिस था, उत्तर कोशल राज |
सूर्यवंश के ही उधर, थे भूपति महराज ||

राजा अज की मित्रता, का उनको था गर्व |
 दुर्घटना  से थे दुखी, राजा-रानी सर्व ||

अवधपुरी आने लगे, ज्यादा कोसलराज |
राज-काज बिधिवत चले, करती परजा नाज ||

धीरे-धीरे बीतता, दुःख से बोझिल काल |
राजकुमार बढ़ते चले, बीत गया इक साल ||,

दूध नंदिनी का पिया, अन्प्राशन की बेर |
आश्रम से वापस हुए, फैला महल उजेर ||

ठुमुक-ठुमुक कर भागते, छोड़-छाड़ पकवान |
दूध नंदिनी का पियें, आता रोज विहान ||

उत्तर कोशल झूमता, राजकुमारी पाय |
पिताश्री भूपति बने, फूले नहीं समाय ||

पुत्री को लेकर करें, अवध पुरी की सैर |
राजा-रानी नियम से, लेने आते खैर ||

नामकरण था हो चुका,  धरते गुण अनुसार |
दशरथ कौशल्या कहें, यह अद्भुत ससार ||

कुछ वर्षों के बाद ही, फिर से राजकुमार |
विधिवत शिक्षा के लिए, गए गुरु आगार ||

अच्छे योद्धा बन गए, महाकुशल बलवान \
दसो दिशा में हांकले, बने अवध की शान |\

शब्द-भेद संधान से, गुरु ने किया अजेय |
अवधपुरी उन्नत रहे, बना एक ही ध्येय || 
राजतिलक विधिवत हुआ, आये कोशल-राज |
कौशल्या भी साथमे, हर्षित सकल समाज ||

बचपन का वो खेलना, आया फिर से याद |
देखा देखी ही हुई, खिंची रेख मरजाद ||
सर्ग-१
भाग-४
रावण, कौशल्या और दशरथ 
दशरथ युग में ही हुआ, दुर्धुश भट बलवान |
पंडित ज्ञानी जानिये, रावण  बड़ा महान ||

बार - बार कैलाश पर,  कर शीशों का दान |
छेड़ी  वीणा  से  मधुर, सामवेद  की  तान ||
 
भण्डारी ने भक्त पर, कर दी कृपा  अपार |
कई शक्तियों से किया,  उसका  बेडा  पार ||

पाकर शिव वरदान वो, पहुंचा ब्रह्मा पास |
श्रृद्धा से की  वन्दना, की  पावन अरदास ||

ब्रह्मा ने परपौत्र को, दिए  कई वरदान |
ब्रह्मास्त्र भी सौंपते, सब शस्त्रों की शान ||

शस्त्र-शास्त्र का हो धनी, ताकत से भरपूर |
मांग अमरता का रहा, वर जब रावन क्रूर ||

ऐसा तो संभव नहीं, परम-पिता के बोल |
मृत्यु सभी की है अटल, मन की गांठें खोल |

कौशल्या का शुभ लगन, हो दशरथ के साथ |
दिव्य-शक्तिशाली सुवन, मारेगा  दस-माथ ||

रावण डर से कांप के, क्रोधित हुआ अपार |
प्राप्त  अमरता  करूँ मैं, कौशल्या को मार ||

मंदोदरी ने जब कहा, नारी हत्या पाप |
झेलोगे कैसे भला,  भर जीवन संताप ||

तब  उसके  कुछ  राक्षस,  पहुँचे  सरयू तीर | 
कौशल्या का अपहरण, करके शिथिल शरीर ||

बंद पेटिका में किया, दिया था जल में डाल |
राजा दशरथ आ गए,  देखा सकल बवाल ||

राक्षस गण से जा भिड़े, चले तीर तलवार |
भगे पराजित राक्षस,  कूदे फिर जलधार ||

आगे बहती पेटिका, पीछे भूपति वीर |
शब्द भेद से था पता, अन्दर एक शरीर ||

बहते बहते पेटिका, गंगा जी में जाय |
जख्मी दशरथ को इधर, रहा दर्द अकुलाय ||

रक्तस्राव था हो रहा, थककर होते चूर |
गिद्ध जटायू देखता, राजा  है  मजबूर  ||
http://ecologyadventure2.edublogs.org/files/2011/04/turkey-vulture-sc5xey.jpg
अर्ध मूर्छित भूपती, घायल पूर्ण शरीर |
औषधि से उपचार कर, रक्खा गंगा तीर ||

दशरथ आये होश में, असर किया वो लेप |
गिद्ध राज के सामने, कथा कही संक्षेप |

कहा जटायू ने उठो, बैठो मुझपर आय |
पहुँचाउंगा शीघ्र ही, राजन उधर उड़ाय ||

बहुत दूर तक ढूँढ़ते, पहुँचे सागर पास |
पाय पेटिका खोलते, हुई बलवती आस ||

कौशल्या बेहोश थी, मद्धिम पड़ती साँस |
नारायण जपते दिखे, नारद जी आकाश ||
बड़े जतन करने पड़े, हुई तनिक चैतन्य |
सम्मुख प्रियजन पाय के, राजकुमारी धन्य ||

नारद विधिवत कर रहे, सब वैवाहिक रीत |
दशरथ को ऐसे मिली, कौशल्या मनमीत ||
नव-दम्पति को ले उड़े,  गिद्धराज खुश होंय ||
नारद जी चलते बने, सुन्दर कड़ी पिरोय ||
jaimala
अवधपुरी सुन्दर सजी, आये कोशलराज |
दोहराए फिर से गए, सब वैवाहिक काज ||  


पहला-सर्ग समाप्त 

Monday, 17 October 2011

2025 का प्रश्न - किस बहना का भाई है ?

 पुरुष- प्रश्न
कितने अपरचित ले गए
धनिया उखाड़ कर -
मैंने छुआ तो  मुझको 
बाहर भगा  दिया ?
सब्जी बनाई थी 
खुश्बू भी आ सके --
 ऐ बेमुरौवत
क्यों ठोकर लगा दिया |
     File:India sex ratio map.svg        
स्त्री -उत्तर 
किचेन  में  तुम्हारी,  
 तीन  पीढ़ी  से  --
क्या घर  की  कोई  बेटी,  
खाना  बनाई है ?
तेरी  न  कोई  फुफ्फी, 
बाबा-कलाई  सूनी --
तूने  भी अपने घर 
कब राखी मनाई  है ?
भूल जा रे लोलुप, 
धनिया नहीं मिलेगी -
पहले बता, 
किस बहना का बन्धु-भाई है ??

Wednesday, 12 October 2011

अब घर ३६- गढ़ हुआ--

 Map of India
टुकड़े-टुकड़े था  हुआ,  सारा   बड़ा   कुटुम्ब, 

पाक, बांगला ब्रह्म बन, लंका से जल-खुम्ब || 
(मेरा बड़ा परिवार बाबा, परबाबा के भाइयों बीच बँटना शुरू हो गया था )

( प्राचीन अखंड भारत खंड-खंड हो गया था)



 

 
अब घर छत्तीसगढ़ हुआ, चंडीगढ़ था यार,
पांडिचेरी  बन  गया, बिखरा घर-परिवार ||
(पत्नी के साथ ३६ का रिश्ता हुआ )--( जैसे पांडिचेरी कई टुकडो में, कई राज्यों में फैला  है, वैसे ही हम धनबाद झारखण्ड में, बेटा आबुधाबी में, बड़ी बेटी त्रिवेंद्रम  केरल में इंजिनियर हैं और छोटी बेटी झाँसी, यू पी में B Tech कर रही है | पैत्रिक निवास फैजाबाद ) 


झारखण्ड बन जिन्दगी, हृदय में उगते शूल,
खनिज सम्पदा से भरा,  बाढ़े  झाड़  बबूल ||
(नक्सल विचार )
नैनों  के  सैलाब  से,  कोसी   करती  रोष,
बाढ़ प्रबन्धन में बहा, सब विहार का कोष ||
(आंसुओं में सब बह गया )
घोर उड़ीसा हो गया, सूख-साख जल स्रोत्र,
पानी की खातिर करूँ,  मान-मनौवल होत्र ||
(सम्मान के लिए मान-मनौवल )

काश्मीर  किस्मत  हुई, डाका  डाले  पाक,
ख़त्म हुई इज्जत गई,  बन जम्मू-लद्दाक ||
(J & K  में केवल घाटी की  ही इज्जत / मोहल्ले में केवल उनकी )

बादल  सा  दिल फट गया,  बहा  उत्तराखंड,
हुआ नहीं बर्दाश्त फिर, दिल्ली का पाखण्ड ||
(बादल फटने के बाद हुई तबाही, हाई-कमान केवल पाखण्ड करे )

उम्मीदी गुजरात की, आस्था का आगार | 
माँ   शेरावाली    करे ,  मेरा   बेडा   पार  ||
(सुख-समृद्धि सम्पन्नता और शान्ति)

महाराष्ट्र का राज भी,  मचा  रहा  आतंक,
तन्हाई  अंडमान  की,  जोर से मारे डंक ||
(राज दार  /  अकेलापन   )

तेलंगाना  हो  गया, सारा  मध्य प्रदेश,
आंध्रा में फैले  सदा, ईर्ष्या सह विद्वेष ||
(मारकाट / भूख-प्यास और ससुराल में बुराई )


तमिलनाडु अम्मा चली, बाबू का करुणांत |
कर-नाटक का खात्मा,  लड़ते  संत-महंत ||
(सास तीर्थयात्रा, बाबु जी स्वर्ग )  (समस्या-समाधान के लिए टोना-टटका, पूजा पाठ)

हरियाणा-पंजाब  हो,   गुजर  रही है शाम,
अरुणाचल के उदय से, होगा सम आसाम ||
(दारुबाज दोस्तों का साथ)     (नई सुबह ----समाधान )

केरल  के साहचर्य  से, यूपी  के  उत्पात,
बंद हो सकेंगे सभी,  घातों  के  प्रतिघात ||
(पढ़े-लिखे समझदार)    (नोंक-झोंक)

अब तो बस इन्तजार है, संस्कृति हो बंगाल,
काट-पीट कर फेंक दे, वैमनस्य  के  जाल ||
(रास-रंग, बेहतर समझबूझ)  (कूटनीतिक परिदृश्य )

देह   हमारी   हो   गई,   पूरी    राजस्थान,
हरियाली अब कर सके, गंगा का वरदान ||
( विषम परिस्थिति )


जल्दी     गोवा    बनेगी,   लक्षद्वीप   की    रेत,
मणि-मेघा-सिक्किम-दमन, त्रिपुरा-लैंड समेत ||