दीखते हैं मुझे सब दृश्य अति-मनोहारी,
कुसुम-कलिकाओं से गंध तेरी आती है |
कोकिला की कूक में भी स्वर की सुधा सुन्दर,
प्यार की मधुर टेर सारिका सुनाती है |
देखूं शशि छबि जब, निहारूं अंशु सूर्य के -
मोहक छटा उसमे तेरी ही दिखाती है |
कमनीय कंज कलिका विहस 'रविकर'
पावन रूप-धूप का सुयश फैलाती है ||
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