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Sunday, 26 June 2011

मोहक छटा

दीखते   हैं   मुझे  सब  दृश्य  अति-मनोहारी,
कुसुम-कलिकाओं  से   गंध  तेरी  आती  है  |

कोकिला की कूक में भी स्वर की सुधा सुन्दर,
प्यार  की  मधुर  टेर    सारिका   सुनाती   है |

देखूं शशि छबि जब, निहारूं  अंशु सूर्य के -
मोहक छटा  उसमे      तेरी ही दिखाती  है |

कमनीय  कंज  कलिका  विहस  'रविकर'
पावन  रूप-धूप  का  सुयश  फैलाती  है ||  

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