Total Pageviews

Friday 29 July 2011

कोई रिश्ता जब अपनी कीमत तय कर ले

ये   जिन्दगी  लगती  आसान  नहीं  प्यारे |
अपने  भी  अब  तो  मेहरबान  नहीं  प्यारे ||

अक्सरहां  वे बात  करते  हैं उसूलों  की--
टूटने  से  उनके,  परेशान  नहीं  प्यारे ||

राजी-ख़ुशी से गुर्दा,  हम निकाल कर दिए--
जिगर में किन्तु उनके, एहसान नहीं प्यारे ||

कमोवेश  एक  ही जैसा  हाल  है  कागा--
पर कोयल की चाल का निदान नहीं प्यारे ||

गुम-सुम सा आज, गांव का बरगद अपना-
पीपल पेड़  का बाकी   निशान  नहीं प्यारे  ||

कोई रिश्ता जब अपनी कीमत तय कर ले
मोल चुका देने में,  नुकसान  नहीं  प्यारे ||

Sunday 17 July 2011

याद प्रिय आते रहो कुछ इस तरह,
मन-समंदर में कि जैसे  ज्वार आये|

प्रत्येक दिन एक बार हौले से सही,
मास में पुरजोर प्रिय दो बार आये |

पूर्णिमा की चांदनी अथवा अमावस,
तार  के  बेतार   से   टंकार   आये |

सीपियों-शंखो की  भाषा में लिखे,
हृदय-तट पर प्यार फैले प्यार आये |

किरणे-उजाले - धूप-तारे - चांदनी,
की शिकायत तू मिटा दे  द्वार आये|

काम का बन्दा,  नकारा  हो चुका, 
शब्द-भावों पर जरा अधिकार आये |

Thursday 14 July 2011

मानवता जीते सदा

ऐब ऐबटाबाद में,  गया  था  उस दिन  मिट |
ओबामा  की  कोशिशें,   हुई  थीं  सारी  हिट ||

अमरीका के जो लगा, जख्म पे मरहम ठण्ड,    
दस सालों से हर जगह, रहा था अक्सर पिट ||

पर   आतंकी   डंक   यह,   है   बेहद   मजबूत,  
रंग  बदलने  लग  पड़ा , है  असली  गिरगिट ||

हारेगा  हर  हाल  में,  लेकिन    आतंक-वाद,
मानवता    जीते    सदा,  ईश्वर   लेख   अमिट ||   
 
                          

Sunday 10 July 2011

मनमे अतीत की याद लिए फिरते है |

 

निज अंतर में उन्माद लिए फिरते हैं 

उन्मादों में अवसाद लिए फिरते हैं

अंदर ही अन्दर झुलस रही है चाहें
मनमे अतीत की याद लिए फिरते है ||

               बेकस का कोमल हृदय जला करता है
              निशदिन उनका कृष-गात धुला करता है
               दुखों    की   नाव    बनाये  नाविक -
               दुर्दिन  सागर पार  किया  करता है ||

औसत से दुगुना भार लिए फिरते हैं
संग में कितनों का प्यार लिए फिरते हैं
यदि किसी भिखारी ने उनसे कुछ माँगा
भाषण का शिष्ट -आचार लिए फिरते हैं ||

            जो सुरा-सुंदरी पान किया करते हैं
           'कल्याण' 'सोमरस' नाम दिया करते हैं
           चाहे कितना भी चीखे-चिल्लाये जनता
           वे कुर्सी-कृष्ण का ध्यान किया करते हैं ||

Wednesday 6 July 2011

बचा लो धरती, मेरे राम

सात अरब लोगों का बोझ,  अलग दूसरी दुनिया खोज |
हुआ यहाँ का चक्का जाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 1 !

क्राइस्ट-काल का जोड़ा अबतक, पूरा चालीस लाख हो चुका |
पेड़  लगा  पाया  बस दो  ठो, लेकिन चालीस लाख खो चुका |
भीषण   युद्ध,   क्रुद्ध   रोगाणु ,  सत्यानाशी   बीज   बो  चुका |
सूखा - बाढ़  अकाल  सुनामी,   जीवन  बारम्बार    रो  चुका||

सिमटे वन घटते संसाधन, अटक गया राशन उत्पादन |
बढ़ते रहते हर  दिन  दाम, बचा लो  धरती,  मेरे  राम ! 2 !

जीवन   शैली   में  परिवर्तन,  चकाचौंध,  भौतिकता  भोग |
खाना - पीना मौज मनाना, काम- क्रोध- मद- लोभी लोग |
वर्तमान पर नहीं नियंत्रण,  कर  अतीत  पर  नव - प्रयोग |
जीव-जंतु का  दुष्कर  जीना, लगा  रही  धरती  अभियोग||


बढे  मरुस्थल  बाढ़े ताप, धरती सहती मानव पाप  |
अब भूकंपन आठों-याम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 3 !

स्वार्थ में अँधा मानव करता, सागर के अन्दर विस्फोट |
करे  सुनामी  पैदा  खुद  से,  रहा  मौत  को  हरदम पोट |
विकिरण का खतरा बढ़ जाये, पहुंचा  रहा  चोट  पे चोट |
जियो और जीने दो  भूला, चला  छुपाता  अपनी  खोट  | 

हिमनद मिटे घटेगा पानी, कही  बवंडर की मनमान |
करे सुनामी काम-तमाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 4 !

बढ़ा रहे  धरती  पर  बोझ, नदियों  पर  ये  बाँध  विशाल |
गर्भ  धरा  का  घायल  करके,  चला बजाता अपने गाल |
एवरेस्ट  पर  पिकनिक करके, छोड़े  करकट करे बवाल |
मानव  पर  है  सनक   सवार,   ऊँचे   टावर   ऊँचे  मॉल |

जीव - जंतु  के  कई प्रकार, रहा प्रदूषण उनको मार  |
दोहन शोषण हुआ हराम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 5 !

कई  जातियाँ  ख़त्म  हो  चुकी,  कई  ख़त्म  होने  वाली |
मानव  अपना  शत्रु बन चुका, काट  रहा  खुद  की  डाली |
दिन-प्रतिदिन  संसाधन चूसे, जिन से  धरा  उसे  पाली |
भौतिक-सुख दुष्कर्म स्वार्थ का, मानव अब गन्दी गाली |

जहर कीटनाशक का फैले, नाले-नदी-शिखर-तट मैले | 
सूक्ष्म तरंगो का कोहराम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 6 !

गंगा  का  पानी  जुड़ता  था, प्रीतम  की  जिन्दगानी  से |
हर  बाला  देवी  की   प्रतिमा   जुडती   मातु   भवानी  से |
दुष्टों  ने  मुहँ  मोड़  लिया  पर  गौरव-मयी   कहानी   से  |
जहर  बुझी  जिभ्या  नित  उगले, उल्टा-पुल्टा वाणी से |

मारक गैसों की भरमार, करते बम क्षण में संहार  |
सूरज सा जहरीला घाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 7 !

आरुषि - प्यारी,  कांड  निठारी, ममता  बच्चे  को मारे |
कितने  सारे  बुजुर्ग  हमारे,  सिर  पटकें  अपने  द्वारे  |
खून - खराबा,  मौत - स्यापा,  मानवता  हरदम  हारे |
काम-बिगाड़े किन्तु दहाढ़े,  लगा  जोर  जमकर नारे |

मानव - अंगों  का  व्यापार, सत्संगो  का सारोकार|
बिगढ़ै पावन तीरथ धाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 8 ! 


Friday 1 July 2011

इक्जाम की आदत गई, इकजाम का अब फेर है |
उस समय था काम  पढना, अब, काम ही हरबेर है |
अंधेर है, अंधेर है ||

हर अंक की खातिर पढ़े, हर जंग में जाकर लड़े |
अब अंक में मदहोश हैं, बस जंग-लगना  देर है |                   
अंधेर है, अंधेर है ||     

थे सभी काबिल बड़े, होकर मगर काहिल पड़े |
ज्ञान का अवसान है, अपनी गली का शेर है |
अंधेर है, अंधेर है ||

न श्रेष्ठता की जानकारी, वरिष्ठ जन पर पड़े भारी |
जिंदगी  की  समझदारी,  में  बहुत  ही  देर  है |
अंधेर है, अंधेर है ||
म्याऊँ के सर ताज है.
सुअर  करे दिन रात सफाई, गधे खुरों से सड़क पाटते |
नगर  सुरक्षा  कुत्ते  करते  भौंक- भौंक के रात काटते|
चोर - उचक्के - पाखंडी  लोगो  को ऐसी डांट डांटते |
गिड़-गिड़ करके भीख मांगते, गिर-गिर करके चरण चाटते--
कहते इसमें राज़ है |
म्याऊँ के सर ताज है ||
                   
                  जाति-प्रथा मजबूत यहाँ पर संस्कार सोलह होते |
                   हंसे लोमड़ी कसे व्यंग खर औ सियार दर दर रोते |
                   न्याय निराले काले भालू वादी-प्रतिवादी-दर पोते |
                   लड़ते - भिड़ते  उमर  काटते अंत दोऊ दीदा खोते --
                   न्याय बिधा पर नाज़ है |
                   म्याऊँ के सर ताज है ||

कहीं  भाग्य  से  टूटे  छींके, छींके  यहाँ  तोडती  बिल्ली |
चौबिस  चूहे  घंटी लेकर  कहते  बहुत  दूर  है  दिल्ली  |
हदबंदी की गीदड़ भभकी, मिलती बिना तेल की तिल्ली  |
नलबंदी पर खास जोर है  दो  से  हद  पिल्ले या पिल्ली  |
कहने में क्या लाज है |
म्याऊँ के सर ताज है ||
                  
                 नहीं  तराजू  बाँट  यहाँ पर, बन्दर बंदरबांट बांटते  |
                 चूहों ने है भरी तिजोरी मोलभाव बिन मॉल छांटते |
                 ऊन छोड़ खादी को पहने, भेड़-भेड़िया खीर चाटते |
                 देशी घी के कटे पराठे , सम्मलेन में  सांठ  गांठते  |
                 युवा मंच नाराज़ है |
                 म्याऊँ के सर ताज है ||

यहाँ टाइगर खेती करते सीमा पर चीते रहते |
शीत लहर लू वर्षा सहते विपदा में जीते रहते |
सिंह यहाँ का बना मुखौटा, सदा उसे सीते रहते |
नस्ल यहाँ हाथी सफ़ेद की दारू-रम पीते रहते--
बाज न आता बाज है |
म्याऊँ के सर ताज है ||

               गंधी इत्र चित्र कंगारू दारू ब्लैक  हार्स  का धंधा |
              चम्गीदर आडिओ-वीडियो उल्लू करे टार्च को अँधा |
              गाय डालडा घी निर्माता बैल बोझ ढोने का धंधा  |
              भैंसा बैठा करे सवारी साम्यवाद का छिलता कंधा--
              प्रतिबंधित आवाज है |
              म्याऊँ के सर ताज है ||

चुगुल-खोर चालक लोमड़ी कुत्तों की अच्छी यारी |
उल्टा सीधा छपने पर, सरे आम पिट जाये बिचारी.
रट्टू  तोते  पाठ  रटाते  बना  तरीका  सरकारी   |
बकरे की माँ खैर मनाये तेज करे औजार शिकारी  --
कितना व्यथित समाज है |
म्याऊँ के सर ताज है ||

                 म्याऊँ की एक गाय दुधारू टैक्सों  का  है जो अधिकार |
                 पीने  को  पाती  सपरेटा   बछड़े   जाते    क्रीम   डकार  |
                 मोर-मोरनी डिस्को  करते    गाता  गधा  राग  मल्हार |
                 एक  मंच  पर  आना  होगा      कहते  सारे  रंगे  सियार |
                 जो कि मुश्किल आज है |
                  म्याऊँ के सर ताज है ||

ए जी टू जी महा घुटाले,  आदर्शवादी  नाम  है  | 
कामन वेल्थ में हेल्थ बनाए खेल नहीं संग्राम है |
आरक्षण की आग लगी इत, उधर नक्सली काम है |
रेल पटरियां कही तोड़ते कही रोड पर जाम है ---
सफ़र पे गिरती गाज़  है |
म्याऊँ के सर ताज है ||

                  शाही को शह मिली हुई है सरे आम देखे करतब |
                  कांटे चुभा-चुभा के चूसे मौका उसे मिले जब-तब |
                  खाना-पीना-मौज मनाना लगे हुए है बाकी सब   | 
                  म्याऊँ सोच रही गद्दी पर देख बिलौटा बैठे कब- 
                  क्या बढ़िया अंदाज़ है |
                  म्याऊँ के सर ताज है ||