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Sunday, 10 July 2011

मनमे अतीत की याद लिए फिरते है |

 

निज अंतर में उन्माद लिए फिरते हैं 

उन्मादों में अवसाद लिए फिरते हैं

अंदर ही अन्दर झुलस रही है चाहें
मनमे अतीत की याद लिए फिरते है ||

               बेकस का कोमल हृदय जला करता है
              निशदिन उनका कृष-गात धुला करता है
               दुखों    की   नाव    बनाये  नाविक -
               दुर्दिन  सागर पार  किया  करता है ||

औसत से दुगुना भार लिए फिरते हैं
संग में कितनों का प्यार लिए फिरते हैं
यदि किसी भिखारी ने उनसे कुछ माँगा
भाषण का शिष्ट -आचार लिए फिरते हैं ||

            जो सुरा-सुंदरी पान किया करते हैं
           'कल्याण' 'सोमरस' नाम दिया करते हैं
           चाहे कितना भी चीखे-चिल्लाये जनता
           वे कुर्सी-कृष्ण का ध्यान किया करते हैं ||

8 comments:

  1. sundar abhivyakti, khoobsurat rachna.

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  2. kripya word verification hatayen comment karne men aasani hogi.
    dashbord>setting>comment>wordverification ko no karen, bas ho gaya.

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  3. औसत से दुगुना भार लिए फिरते हैं
    संग में कितनों का प्यार लिए फिरते हैं
    यदि किसी भिखारी ने उनसे कुछ माँगा
    भाषण का शिष्ट -आचार लिए फिरते हैं ||
    sachchi baat

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  4. वे कुर्सी कृष्ण का ध्यान किया करतें हैं .
    वन वैदेही हर लियो रावण कल एक रात ,
    कृष्ण बचावो लाज .भारत एक कुर्सी प्रधान देश है .

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  5. औसत से दुगुना भार लिए फिरते हैं
    संग में कितनों का प्यार लिए फिरते हैं
    यदि किसी भिखारी ने उनसे कुछ माँगा
    भाषण का शिष्ट -आचार लिए फिरते हैं

    वाह...वाह...वाह...कडवी लेकिन सच्ची बात...लाजवाब रचना...बधाई स्वीकारें

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  6. ravi ji
    bahut hi bhav purn aur behad sateek chitran kiya hai aapne .bahut hi sundar lagi aapki rachna.
    aap anytha na lijiyega ,aapka dusre wale stanza me sagar par ki jagah paar hona chahiye tha.
    bahut hi prashanshniy prastuti
    badhi
    poonam

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  7. यदि किसी भिखारी ने उनसे कुछ माँगा
    भाषण का शिष्ट -आचार लिए फिरते हैं ||
    रचना में निहित व्यंग्य सीधे चोट करता है।

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