बीबी बोकारो बसी, बैजू है बीमार ।
देख दुर्दशा दीन की, देता रविकर तार ।।
तार
बोका रो-रो कर मरे, बोकारो न जाय ।
सर्दी खांसी ज्वर बढ़ा, कोई नहीं सहाय ।।
बैजू होता बावरा, सहे करेजे चोट ।
बोकारो जाए कसक, लेके सौ का नोट ।।
यह विछोह का घाव अब, उससे सहा न जाय ।
गम की मक्खी भिनभिना, तड़पन रही बढ़ाय ।।
लगे काम में मन नहीं, रती रहित बेकाम ।
यहाँ वहां बेदम खड़ा, बड़ा पुकारे नाम ।।
achche rochak dohe.
ReplyDeleteगरीब का प्रवास ऐसा ही होता है।
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