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Thursday 4 August 2011

रक्त-कोष की पहरेदारी--

चालबाज, ठग, धूर्तराज   सब,   पकडे   बैठे   डाली - डाली |

आज बाज को काज मिला जो करता चिड़ियों की रखवाली |


दुग्ध-केंद्र मे धामिन ने जब, सब गायों पर छान्द लगाया |
मगरमच्छ ने  अपनी हद में,  मत्स्य-केंद्र  मंजूर  कराया ||            


महाघुटाले - बाजों   ने   ली,  जब तिहाड़ की जिम्मेदारी |
जल्लादों ने झपटी झट से, मठ-मंदिर की कुल मुख्तारी||


अंग-रक्षकों  ने  मालिक  की  ले ली  जब से मौत-सुपारी |
लुटती  राहें,   करता  रहबर  उस  रहजन  की  ताबेदारी  ||


शीत - घरों  के  बोरों  की  रखवाली  चूहों  का  अधिकार |
भले - राम   की   नैया   खेवें,  टुंडे - मुंडे   बिन   पतवार ||


तिलचट्टों ने तेल कुओं पर, अपनी कुत्सित नजर गढ़ाई |
तो रक्त-कोष  की  पहरेदारी,  नर-पिशाच के जिम्मे  आई | 

6 comments:

  1. महाघुटाले - बाजों ने ली, जब तिहाड़ की जिम्मेदारी |
    जल्लादों ने झपटी झट से, मठ-मंदिर की कुल मुख्तारी||
    बहुत बढ़िया .....

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  2. तुलसी के पत्ते सूखे हैं ,और कैक्टस आज हरें हैं ,
    आज राम को भूख लगी है ,रावण ,के भण्डार भरें हैं .अनायास ये पंक्तियाँ याद आ गईं और यह भी -अभी तो कोयलों में काग बहुत बाकी है ,अभी कुछ और करो ....
    बहुत सामयिक और अपने समय की गुहार है यह खूबसूरत ग़ज़ल आप कि ,आपकी ही तरह .

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  3. क्या ब्बात है रविकर जी...
    मज़ा आ गया...
    सादर..

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  4. काहे को भाजी बिदेश रे सुन दुर्मुख मेरे -
    क्या बात है रविकर जी छा जातें हैं आप -भले राम की नैया खेवें ,टुंडे -मुंडे बिन पतवार .
    आगएं हैं कुंवर साहब कोंग्रेस प्रेसिडेंट बनके ,एक दुर्मुख दूसरा मंद मति बालक ,राम मिलाई जोड़ी एक ...

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  5. सटीक अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  6. वाह .. कैसे कैसे बिम्ब प्रयोग किए हैं इस रचना में ... गज़ब दिनेश जी ...

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