पुरुष- प्रश्न
कितने अपरचित ले गए
धनिया उखाड़ कर -
धनिया उखाड़ कर -
मैंने छुआ तो मुझको
बाहर भगा दिया ?
बाहर भगा दिया ?
सब्जी बनाई थी
खुश्बू भी आ सके --
खुश्बू भी आ सके --
ऐ बेमुरौवत
क्यों ठोकर लगा दिया |
क्यों ठोकर लगा दिया |
स्त्री -उत्तर
किचेन में तुम्हारी,
तीन पीढ़ी से --
क्या घर की कोई बेटी,
खाना बनाई है ?
खाना बनाई है ?
तेरी न कोई फुफ्फी,
बाबा-कलाई सूनी --
बाबा-कलाई सूनी --
तूने भी अपने घर
कब राखी मनाई है ?
कब राखी मनाई है ?
भूल जा रे लोलुप,
धनिया नहीं मिलेगी -
पहले बता,
किस बहना का बन्धु-भाई है ??
किस बहना का बन्धु-भाई है ??
इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
वाह...क्या बात है..
ReplyDeleteBadi sundarta se apni baat kahi hai aapne.
ReplyDeleteMy Blog: Life is Just a Life
My Blog: My Clicks
.
are waah !!!
ReplyDelete'बेटी बचाओ'जैसा महत्वपूर्ण संदेश देने का निराला अंदाज...
ReplyDeleteविषय को नवीनता से प्रस्तुत किया है आपने...
ReplyDeletewah......anmol.....
ReplyDeleteBetiyan zaroori hain- aur kuchh nahin to swayam ko samajhne ke liye!
ReplyDeleteस्त्री पुरुष विषम अनुपात पर मार्मिक रचना प्रतीकों का खूबसूरत स्तेमाल लिए .
ReplyDeleteबहुत लाजवाब प्रस्तुति...वधाई
ReplyDeleteहाहहाहाहा, बढिया है। बहुत सुंदर
ReplyDelete