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Tuesday, 15 November 2011

भगवती शांता परम (मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सहोदरी बहन )



Om 


सर्ग-1 
भाग-1 
सोरठा  
 वन्दऊँ श्री गणेश, गणनायक हे एकदंत |
जय-जय जय विघ्नेश, पूर्ण कथा कर पावनी ||1||
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiESxEbqwnLALv3ETh-NJqVHOVeRLsVaPpw8TkCN2fDqLWeJ8dPRXrrIHVNdrvzx-BPlItrrKHPvg7CQ0ptujoLSiehAQox4vf-wAvAd59lY2kPj5BzcNadniyl6lvXCP4TCVJXKSZu8tc/s1600/shree-ganesh.jpg
वन्दऊँ गुरुवर श्रेष्ठ, जिनकी किरपा से बदल,
यह गँवार ठठ-ठेठ, काव्य-साधना में रमा ||2||

गोधन को परनाम , परम पावनी नंदिनी |
गोकुल मथुरा धाम, गोवर्धन को पूजता ||3||
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/8/8f/Ghaghra-River.png
वेद-काल का साथ, पावन सिन्धु सरस्वती |
ईरानी हेराथ, सरयू ये समकालिनी ||4||

राम-भक्त हनुमान,  सदा विराजे अवधपुर |
कर सरयू अस्नान, मोक्ष मिले अघकृत तरे ||5||
करनाली / घाघरा नदी का स्रोत्र 
करनाली का स्रोत्र, मानसरोवर के निकट |
करते जप-तप होत्र, महामनस्वी विचरते ||6||
File:Nepal map.png
क्रियाशक्ति भरपूर, पावन भू की वन्दना |
राम भक्ति में चूर, मोक्ष प्राप्त कर लो यहाँ ||7||
करनाली / घाघरा नदी के स्रोत्र  के पास मान-सरोवर


सरयू अवध प्रदेश, दक्षिण दिश में बस रहा |
यह विष्णु सन्देश, स्वर्ग सरीखा दिव्यतम ||8||


पूज्य अयुध  भूपाल, रामचंद्र के पूर्वज |
गए नींव थे डाल, बसी अयोध्या पावनी ||9||
Janmabhoomi
राम-कोट 
माया मथुरा साथ, काशी कांची अवंतिका |
महामोक्ष का पाथ, श्रेष्ठ अयोध्या द्वारिका ||10||

अंतरभू  प्रवाह, सरयू सरसर वायु सी
संगम तट निर्वाह,  पूज घाघरा शारदा ||11||
http://www.pilgrimageindia.net/hindu_pilgrimage/images/ayodhya1.jpg 
सरयू जी 
पुरखों का इत वास, तीन कोस बस दूर है |
बचपन में ली साँस, यहीं किनारे खेलता ||12||


परिक्रमा श्री धाम, चौरासी  कोसी  मिले |
पटरंगा मम ग्राम, होय सदा हर फाल्गुन ||13||


बाबा कालीचरण, परबाबा बालमुकुन्द |
'रविकर' का अवतरण,लल्लू राम की सन्तति ||14||


सहोदरी छह बहन, पुत्री मम तनु-मनु प्रिये |
कहूँ कथा अथ गहन, सहोदरी श्री राम की ||15||


थे दशरथ महराज, सूर्यवंश के तिरसठे |
रथ दुर्लभ अंदाज, दशों दिशा में हांक लें ||16||
File:Parijat-tree-at-Kintoor-Barabanki-002.jpg 
पारिजात (किन्नूर)
पटरंगा से 3 कोस  
पिता-श्रेष्ठ 'अज' भूप, असमय स्वर्ग सिधारते |
 निकृष्ट कथा कुरूप, चेतो माता -पिता सब ||17||


सर्ग-1 
भाग-२ 
दशरथ बाल-कथा --



aish
दोहा
इंदुमती के प्रेम में, भूपति अज महराज |
लम्पट विषयी जो हुए, झेले राज अकाज ||1||

गुरु वशिष्ठ की मंत्रणा, सह सुमंत बेकार |
इंदुमती के प्यार ने, दूर किया  दरबार ||2||




क्रीड़ा सह खिलवाड़ ही, परम सौख्य परितोष |
सुन्दरता पागल करे, मानव का क्या दोष ||3||


अति सबकी हरदम बुरी, खान-पान-अभिसार |
क्रोध-प्यार बडबोल से,  जाय  जिंदगी  हार ||4||
 
झूले  मुग्धा  नायिका, राजा  मारें  पेंग |
वेणी लागे वारुणी,  दिखा रही वो  ठेंग ||5||

राज-वाटिका  में  रमे, चार पहर से आय |
आठ-मास के पुत्र को,  दुग्ध पिलाती धाय ||6||

नारायण-नारायणा,  नारद  निधड़क  नाद |
अवधपुरी का आसमाँ, स्वर्गलोक के बाद ||7||

वीणा से माला गिरी, इंदुमती पर  आय |
ज्योत्सना वह अप्सरा, जान हकीकत जाय ||8||

एक पाप का त्रास वो, यहाँ रही थी भोग |
स्वर्ग-लोक नारी गई, अज को परम वियोग ||9||

माँ का पावन रूप भी, सका न उसको रोक |
आठ माह के लाल को, छोड़ गई इह-लोक ||10||
विरह वियोगी महल में, कदम उठाया गूढ़ |
भूल पुत्र को कर लिया, आत्मघात वह मूढ़ ||11|

माता की ममता छली, करता पिता अनाथ |
रोय-रोय हारा शिशू , पटक-पटक के माथ ||12||

क्रियाकर्म  होता  रहा, तेरह दिन का शोक |
अबोध शिशु की मुश्किलें, रही थी बरछी भोंक ||13||  

आंसू बहते अनवरत, गला गया था बैठ |
राज भवन में थी सदा, अरुंधती की पैठ ||14|

पत्नी पूज्य वशिष्ठ की, सादर उन्हें प्रणाम |
 एक मास तक पालती, माता सम अविराम ||15||
File:Batu Caves Kamadhenu.jpg 
नंदिनी की माँ कामधेनु 
 महामंत्री थे सुमंत, गए गुरू के पास |
लालन-पालन की किया, कुशल व्यवस्था ख़ास ||16||

महागुरू मरुधन्व के, आश्रम में तत्काल |
 गुरु-आज्ञा पा ले गए, व्याकुल दशरथ बाल ||17||

जहाँ नंदिनी पालती, बाला-बाल तमाम |
दुग्ध पिलाती प्रेम से, भ्रातृ-भाव  पैगाम ||18||

माँ कामधेनु की पुत्री, करती इच्छा पूर |
देवलोक की नंदिनी, इस आश्रम की नूर ||19||
सर्ग-१
भाग-३
दक्षिण कोशल सरिस था, उत्तर कोशल राज |
सूर्यवंश के ही उधर, थे भूपति महराज ||

राजा अज की मित्रता, का उनको था गर्व |
 दुर्घटना  से थे दुखी, राजा-रानी सर्व ||

अवधपुरी आने लगे, ज्यादा कोसलराज |
राज-काज बिधिवत चले, करती परजा नाज ||

धीरे-धीरे बीतता, दुःख से बोझिल काल |
राजकुमार बढ़ते चले, बीत गया इक साल ||,

दूध नंदिनी का पिया, अन्प्राशन की बेर |
आश्रम से वापस हुए, फैला महल उजेर ||

ठुमुक-ठुमुक कर भागते, छोड़-छाड़ पकवान |
दूध नंदिनी का पियें, आता रोज विहान ||

उत्तर कोशल झूमता, राजकुमारी पाय |
पिताश्री भूपति बने, फूले नहीं समाय ||

पुत्री को लेकर करें, अवध पुरी की सैर |
राजा-रानी नियम से, लेने आते खैर ||

नामकरण था हो चुका,  धरते गुण अनुसार |
दशरथ कौशल्या कहें, यह अद्भुत ससार ||

कुछ वर्षों के बाद ही, फिर से राजकुमार |
विधिवत शिक्षा के लिए, गए गुरु आगार ||

अच्छे योद्धा बन गए, महाकुशल बलवान \
दसो दिशा में हांकले, बने अवध की शान |\

शब्द-भेद संधान से, गुरु ने किया अजेय |
अवधपुरी उन्नत रहे, बना एक ही ध्येय || 
राजतिलक विधिवत हुआ, आये कोशल-राज |
कौशल्या भी साथमे, हर्षित सकल समाज ||

बचपन का वो खेलना, आया फिर से याद |
देखा देखी ही हुई, खिंची रेख मरजाद ||
सर्ग-१
भाग-४
रावण, कौशल्या और दशरथ 
दशरथ युग में ही हुआ, दुर्धुश भट बलवान |
पंडित ज्ञानी जानिये, रावण  बड़ा महान ||

बार - बार कैलाश पर,  कर शीशों का दान |
छेड़ी  वीणा  से  मधुर, सामवेद  की  तान ||
 
भण्डारी ने भक्त पर, कर दी कृपा  अपार |
कई शक्तियों से किया,  उसका  बेडा  पार ||

पाकर शिव वरदान वो, पहुंचा ब्रह्मा पास |
श्रृद्धा से की  वन्दना, की  पावन अरदास ||

ब्रह्मा ने परपौत्र को, दिए  कई वरदान |
ब्रह्मास्त्र भी सौंपते, सब शस्त्रों की शान ||

शस्त्र-शास्त्र का हो धनी, ताकत से भरपूर |
मांग अमरता का रहा, वर जब रावन क्रूर ||

ऐसा तो संभव नहीं, परम-पिता के बोल |
मृत्यु सभी की है अटल, मन की गांठें खोल |

कौशल्या का शुभ लगन, हो दशरथ के साथ |
दिव्य-शक्तिशाली सुवन, मारेगा  दस-माथ ||

रावण डर से कांप के, क्रोधित हुआ अपार |
प्राप्त  अमरता  करूँ मैं, कौशल्या को मार ||

मंदोदरी ने जब कहा, नारी हत्या पाप |
झेलोगे कैसे भला,  भर जीवन संताप ||

तब  उसके  कुछ  राक्षस,  पहुँचे  सरयू तीर | 
कौशल्या का अपहरण, करके शिथिल शरीर ||

बंद पेटिका में किया, दिया था जल में डाल |
राजा दशरथ आ गए,  देखा सकल बवाल ||

राक्षस गण से जा भिड़े, चले तीर तलवार |
भगे पराजित राक्षस,  कूदे फिर जलधार ||

आगे बहती पेटिका, पीछे भूपति वीर |
शब्द भेद से था पता, अन्दर एक शरीर ||

बहते बहते पेटिका, गंगा जी में जाय |
जख्मी दशरथ को इधर, रहा दर्द अकुलाय ||

रक्तस्राव था हो रहा, थककर होते चूर |
गिद्ध जटायू देखता, राजा  है  मजबूर  ||
http://ecologyadventure2.edublogs.org/files/2011/04/turkey-vulture-sc5xey.jpg
अर्ध मूर्छित भूपती, घायल पूर्ण शरीर |
औषधि से उपचार कर, रक्खा गंगा तीर ||

दशरथ आये होश में, असर किया वो लेप |
गिद्ध राज के सामने, कथा कही संक्षेप |

कहा जटायू ने उठो, बैठो मुझपर आय |
पहुँचाउंगा शीघ्र ही, राजन उधर उड़ाय ||

बहुत दूर तक ढूँढ़ते, पहुँचे सागर पास |
पाय पेटिका खोलते, हुई बलवती आस ||

कौशल्या बेहोश थी, मद्धिम पड़ती साँस |
नारायण जपते दिखे, नारद जी आकाश ||
बड़े जतन करने पड़े, हुई तनिक चैतन्य |
सम्मुख प्रियजन पाय के, राजकुमारी धन्य ||

नारद विधिवत कर रहे, सब वैवाहिक रीत |
दशरथ को ऐसे मिली, कौशल्या मनमीत ||
नव-दम्पति को ले उड़े,  गिद्धराज खुश होंय ||
नारद जी चलते बने, सुन्दर कड़ी पिरोय ||
jaimala
अवधपुरी सुन्दर सजी, आये कोशलराज |
दोहराए फिर से गए, सब वैवाहिक काज ||  


पहला-सर्ग समाप्त 

4 comments:

  1. नमन है ... चरण छूने को मन करता है आपके ..

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  2. सादर प्रणाम जी...


    एकात्मकता मंत्र सरीखी रचना है आपकी....

    साधुवाद.

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  3. बहुत सुंदर और भावमय पोस्ट...सुंदर चित्रों व भक्तिभाव से पूर्ण यह अनुपम पोस्ट आपके श्रम को झलकाती है... बधाई!

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