पंजाब एवं बंग आगे, कट चुके हैं अंग आगे|
लड़े बहुतै जंग आगे, और होंगे तंग आगे|
हर गली तो बंद आगे, बोलिए, है क्या उपाय ??
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !
सर्दियाँ ढलती हुई हैं, चोटियाँ गलती हुई हैं |
गर्मियां बढती हुई हैं, वादियाँ जलती हुई हैं |
गोलियां चलती हुई हैं, हर तरफ आतंक छाये --
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !नियत नीति को बिगाड़े, भ्रष्टता भी समय ताड़े |
विषमतायें नित उभारे, खेत को ही मेड खाए |
मंदिरों में मकड़ जाला, हर पुजारी चतुर लाला |
भक्त की बुद्धि पे ताला, *गौर बनता दान काला | *सोना
जापते रुद्राक्ष माला, बस पराया माल आए--
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !
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बेबस, गरीबी रो रही है, भूख, प्यासी सो रही है |
युवा पहले से पढ़ा पर , ज्ञान माथे पर चढ़ाकर |
वर्ग खुद आगे बढ़ा पर , खो चुका संवेदनाएं |
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !
है दोस्तों से यूँ घिरा, न पा सका उलझा सिरा |
पी रहा वो मस्त मदिरा, यादकर के सिर-फिरा |
गिर गया कहकर गिरा, भाड़ में ये देश जाए|
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय ! त्याग जीवन के सुखों को, भूल माता के दुखों को |
प्रेम-यौवन से बिमुख हो, मातृभू हो स्वतन्त्र-सुख हो |
क्रान्ति की लौ थे जलाए, गीत आजादी के गाये |
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !
सच में देश गुलाम ही ठीक था।
ReplyDeletedukhad ...par sach
ReplyDeleteव्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !
ReplyDeleteआज के हालात में यही सच लगता है.....
उम्दा लेखन.... सादर
आपकी लेखनी में जादू है।
ReplyDeletebahut sachchai se rubru karati hai yah post.behtreen rachna.
ReplyDeleteउद्वेलित करने वाली रचना!
ReplyDeleteसार्थक वातावरण प्रधान काव्यात्मक प्रस्तुति .भौगोलिक दुरावस्था का सटीक चित्रण .
ReplyDeleteTuesday, September 20, 2011
महारोग मोटापा तेरे रूप अनेक .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
व्यर्थ हमने सर कटाए, चिंतन का विषय है।
ReplyDeleteचिंतन का विषय है पर
ReplyDeleteनर हो न निराश करो मन को
न भूलिये।धन्यवाद।