Total Pageviews

Saturday, 17 September 2011

व्यर्थ हमने सिर कटाए















 
पंजाब एवं  बंग आगे,  कट चुके हैं  अंग आगे|
लड़े  बहुतै  जंग  आगे,  और  होंगे  तंग  आगे|
हर गली तो बंद आगे, बोलिए, है क्या उपाय ??
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !

सर्दियाँ ढलती  हुई हैं,  चोटियाँ  गलती हुई हैं |
गर्मियां  बढती हुई हैं,  वादियाँ  जलती हुई हैं |
गोलियां चलती हुई हैं, हर तरफ आतंक छाये --
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !
Image of Akhand Bharat as a goddess
सब दिशाएँ  लड़ रही हैं,   मूर्खताएं  बढ़ रही हैं  |

नियत नीति को बिगाड़े, भ्रष्टता भी समय ताड़े |
विषमतायें नित उभारे, खेत  को  ही मेड खाए |
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !

 मंदिरों में मकड़ जाला,  हर पुजारी  चतुर लाला | 
 भक्त की बुद्धि पे ताला,  *गौर  बनता  दान  काला |  *सोना
 जापते  रुद्राक्ष  माला,   बस  पराया  माल  आए--
 व्यर्थ हमने सिर कटाए,  बहुत ही अफ़सोस, हाय !

 

हम फिरंगी से  लड़े  थे  , नजरबंदी  से  लड़े   थे |
बालिकाएं मिट रही हैं , गली-घर में  लुट रही हैं  |
होलिका बचकर निकलती, जान से प्रह्लाद जाये --
व्यर्थ हमने सिर कटाए,  बहुत ही अफ़सोस, हाय !

 

बेबस, गरीबी रो रही है, भूख, प्यासी सो रही है  |
युवा पहले से पढ़ा पर , ज्ञान  माथे  पर चढ़ाकर |   
वर्ग  खुद  आगे  बढ़ा  पर ,  खो चुका संवेदनाएं |
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !

है  दोस्तों से यूँ घिरा,   न पा सका उलझा सिरा |
पी रहा वो मस्त मदिरा, यादकर के  सिर-फिरा |

गिर गया कहकर गिरा,   भाड़  में  ये  देश जाए|
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय ! 


त्याग जीवन के सुखों को,  भूल  माता  के  दुखों को |
प्रेम-यौवन से बिमुख हो, मातृभू हो स्वतन्त्र-सुख हो |

क्रान्ति की  लौ  थे  जलाए,  गीत  आजादी  के  गाये |
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय ! 

9 comments:

  1. सच में देश गुलाम ही ठीक था।

    ReplyDelete
  2. व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !

    आज के हालात में यही सच लगता है.....
    उम्दा लेखन.... सादर

    ReplyDelete
  3. आपकी लेखनी में जादू है।

    ReplyDelete
  4. bahut sachchai se rubru karati hai yah post.behtreen rachna.

    ReplyDelete
  5. उद्वेलित करने वाली रचना!

    ReplyDelete
  6. सार्थक वातावरण प्रधान काव्यात्मक प्रस्तुति .भौगोलिक दुरावस्था का सटीक चित्रण .
    Tuesday, September 20, 2011
    महारोग मोटापा तेरे रूप अनेक .
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/

    ReplyDelete
  7. व्‍यर्थ हमने सर कटाए, चिंतन का विषय है।

    ReplyDelete
  8. चिंतन का विषय है पर
    नर हो न निराश करो मन को
    न भूलिये।धन्यवाद।

    ReplyDelete