पति-अनुनय को कह धता, कुपित होय तत्काल |
बरछी-बोल कटार-गम, दरक जाय मन-ढाल ||
पत्नी पग-पग पर परे, पति पर न पतियाय |
श्रीमन का मन मन्मथा, श्रीमति मति मटियाय ||
हार गले की फांस है, किया विरह-आहार |
हारहूर से तेज है, हार हूर अभिसार ||
हारहूर=मद्य आहार-विरह=रोटी के लाले
हारहूर से तेज है, हार हूर अभिसार ||
हारहूर=मद्य आहार-विरह=रोटी के लाले
चमकी चपला-चंचला , छींटा छेड़ छपाक |
तेज तड़ित तन तोड़ती, तददिन तमक तड़ाक |
मुमुक्षता मुँहबाय के, माया मोह मिटाय |
मृत्यु-लोक से जाय के, महबूबा चिल्लाय ||
मुमुक्षता=मुक्ति की अभिलाषा का भाव
पन-घट पर का घट-पना, परकाकर के खूब |
घरजाया - घोटक - घटक, डिंगल - डीतर डूब ||
घरजाया - घोटक - घटक, डिंगल - डीतर डूब ||
डिंगल=दूषित नीच अधम
डीतर=पीछा करने वाला
परका=चस्का लगा
घरजाया=घर का दास
घोटक= घोड़ा
घटक=बिचौलिया, विवाह सम्बन्ध निश्चित कराने वाला |
लगता है आपको शब्दों की गेंदें बना कर इधर-उधर उछालने में बहुत रस आता है... पढ़ने में थोडा श्रम करना पड़ा पर सार्थक रहा.
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति...अनीता जी की बात से सहमत हूँ...
ReplyDeleteपढ़ने में थोडा श्रम करना पड़ा पर सार्थक रहा.
सरस और व्यंग्यपूर्ण!
ReplyDeleteजन पदीय भाषा का चमत्कार .सुन्दर प्रस्तुति .
ReplyDeleteहार गले की फांस है, किया विरह-आहार |
ReplyDeleteहारहूर से तेज है, हार हूर अभिसार ||
अति सुन्दर अनुप्रासिक प्रस्तुति .बधाई .