संदीप जी (जाट देवता ) के जन्म दिन पर
समर्पित रचना
अक्कड़-बक्कड़ बम्बे-बो, अस्सी नब्बे पूरे सौ ||
अक्षय और अनंत ऊर्जा का, शाश्वत भण्डार सूर्य हो |
मत्स्य-भेदते द्रुपद-सुता के, स्वप्नों के प्रिय-पार्थ-पूर्य हो ||
घुमक्कड़ी के संदीपक हो, मित्रों ने पाया उजियारा |
परिक्रमा सारी दुनिया की, दुर्गम-दुर्धुष सा व्रत धारा ||
घुमक्कड़ी के संदीपक हो, मित्रों ने पाया उजियारा |
परिक्रमा सारी दुनिया की, दुर्गम-दुर्धुष सा व्रत धारा ||
पञ्चम-स्वर की चार-श्रुति में, तीजी श्रुति संदीपन से तुम |
सागर सर नद तट कौतूहल, मठमंदिर वन-उपवन से तुम ||
पर्वत के उत्तुंग-शिखर पर, मानवता का ध्वज फहराते |
पर्वत के उत्तुंग-शिखर पर, मानवता का ध्वज फहराते |
तप्त-मरुस्थल पर गर्वीले, अपने विजयी कदम बढाते ||
प्रकृति सुंदरी के दर्शन हित, निकल पड़ें जैसे फटती पौ |
अक्कड़ - बक्कड़ बम्बे-बो, अस्सी नब्बे पूरे सौ ||
अक्कड़ - बक्कड़ बम्बे-बो, अस्सी नब्बे पूरे सौ ||
जन्मदिन पर हमारी भी शुभकामनायें !
ReplyDeleteसंदीप जी (जाट देवता ) को हमारी भी शुभ कामनाएं । आपकी काव्य बधाई सुंदर लगी ।
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