Total Pageviews

Friday 1 July 2011

इक्जाम की आदत गई, इकजाम का अब फेर है |
उस समय था काम  पढना, अब, काम ही हरबेर है |
अंधेर है, अंधेर है ||

हर अंक की खातिर पढ़े, हर जंग में जाकर लड़े |
अब अंक में मदहोश हैं, बस जंग-लगना  देर है |                   
अंधेर है, अंधेर है ||     

थे सभी काबिल बड़े, होकर मगर काहिल पड़े |
ज्ञान का अवसान है, अपनी गली का शेर है |
अंधेर है, अंधेर है ||

न श्रेष्ठता की जानकारी, वरिष्ठ जन पर पड़े भारी |
जिंदगी  की  समझदारी,  में  बहुत  ही  देर  है |
अंधेर है, अंधेर है ||

3 comments:

  1. भाई वाह वाह क्या बात कही -रविकर जी आप ने एक शब्द अनेक अर्थ मजा आ गया
    हर अंक की खातिर पढ़े, हर जंग में जाकर लड़े |
    अब अंक में मदहोश हैं, बस जंग-लगना देर है |
    अंधेर है, अंधेर है ||

    अब इसमें भी नजर लगाने लगे
    भ्रष्टाचार के बाद -अब अंक में रहना भी नहीं सुहा रहा ?

    ReplyDelete
  2. हर अंक की खातिर पढ़े, हर जंग में जाकर लड़े |
    अब अंक में मदहोश हैं, बस जंग-लगना देर है |
    अंधेर है, अंधेर है ||

    बहुत बढ़िया .....

    ReplyDelete
  3. अरे वाह...शब्दों से कमाल किया है आपने...बधाई स्वीकारें

    नीरज

    ReplyDelete