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Wednesday 6 July 2011

बचा लो धरती, मेरे राम

सात अरब लोगों का बोझ,  अलग दूसरी दुनिया खोज |
हुआ यहाँ का चक्का जाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 1 !

क्राइस्ट-काल का जोड़ा अबतक, पूरा चालीस लाख हो चुका |
पेड़  लगा  पाया  बस दो  ठो, लेकिन चालीस लाख खो चुका |
भीषण   युद्ध,   क्रुद्ध   रोगाणु ,  सत्यानाशी   बीज   बो  चुका |
सूखा - बाढ़  अकाल  सुनामी,   जीवन  बारम्बार    रो  चुका||

सिमटे वन घटते संसाधन, अटक गया राशन उत्पादन |
बढ़ते रहते हर  दिन  दाम, बचा लो  धरती,  मेरे  राम ! 2 !

जीवन   शैली   में  परिवर्तन,  चकाचौंध,  भौतिकता  भोग |
खाना - पीना मौज मनाना, काम- क्रोध- मद- लोभी लोग |
वर्तमान पर नहीं नियंत्रण,  कर  अतीत  पर  नव - प्रयोग |
जीव-जंतु का  दुष्कर  जीना, लगा  रही  धरती  अभियोग||


बढे  मरुस्थल  बाढ़े ताप, धरती सहती मानव पाप  |
अब भूकंपन आठों-याम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 3 !

स्वार्थ में अँधा मानव करता, सागर के अन्दर विस्फोट |
करे  सुनामी  पैदा  खुद  से,  रहा  मौत  को  हरदम पोट |
विकिरण का खतरा बढ़ जाये, पहुंचा  रहा  चोट  पे चोट |
जियो और जीने दो  भूला, चला  छुपाता  अपनी  खोट  | 

हिमनद मिटे घटेगा पानी, कही  बवंडर की मनमान |
करे सुनामी काम-तमाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 4 !

बढ़ा रहे  धरती  पर  बोझ, नदियों  पर  ये  बाँध  विशाल |
गर्भ  धरा  का  घायल  करके,  चला बजाता अपने गाल |
एवरेस्ट  पर  पिकनिक करके, छोड़े  करकट करे बवाल |
मानव  पर  है  सनक   सवार,   ऊँचे   टावर   ऊँचे  मॉल |

जीव - जंतु  के  कई प्रकार, रहा प्रदूषण उनको मार  |
दोहन शोषण हुआ हराम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 5 !

कई  जातियाँ  ख़त्म  हो  चुकी,  कई  ख़त्म  होने  वाली |
मानव  अपना  शत्रु बन चुका, काट  रहा  खुद  की  डाली |
दिन-प्रतिदिन  संसाधन चूसे, जिन से  धरा  उसे  पाली |
भौतिक-सुख दुष्कर्म स्वार्थ का, मानव अब गन्दी गाली |

जहर कीटनाशक का फैले, नाले-नदी-शिखर-तट मैले | 
सूक्ष्म तरंगो का कोहराम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 6 !

गंगा  का  पानी  जुड़ता  था, प्रीतम  की  जिन्दगानी  से |
हर  बाला  देवी  की   प्रतिमा   जुडती   मातु   भवानी  से |
दुष्टों  ने  मुहँ  मोड़  लिया  पर  गौरव-मयी   कहानी   से  |
जहर  बुझी  जिभ्या  नित  उगले, उल्टा-पुल्टा वाणी से |

मारक गैसों की भरमार, करते बम क्षण में संहार  |
सूरज सा जहरीला घाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 7 !

आरुषि - प्यारी,  कांड  निठारी, ममता  बच्चे  को मारे |
कितने  सारे  बुजुर्ग  हमारे,  सिर  पटकें  अपने  द्वारे  |
खून - खराबा,  मौत - स्यापा,  मानवता  हरदम  हारे |
काम-बिगाड़े किन्तु दहाढ़े,  लगा  जोर  जमकर नारे |

मानव - अंगों  का  व्यापार, सत्संगो  का सारोकार|
बिगढ़ै पावन तीरथ धाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 8 ! 


7 comments:

  1. "BCHALO DHARTI MERE RAM "touches the nerve of our times ,the degradation of the environments and all the eco systems in our ambience .The typical atmosphere or mood of a place is no more around us .Environmental diseases are on the rise for the same reason .very meaningful couplets in all its tone and overtones .Thanks for this creative "PARYAVARNI DOHE /MAHAULI DOHE ".

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  2. बहुत सुंदर सार्थक पुकार लिए पंक्तियाँ

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  3. बढे मरुस्थल बाढ़े ताप, धरती सहती मानव पाप |
    अब भूकंपन आठों-याम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 3 !
    bahut hi sashakt abhivyakti

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  4. Sunder kawita men kaee gambheer wishayon ko samet liya hai aapne .

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  5. बढे मरुस्थल बाढ़े ताप, धरती सहती मानव पाप |
    अब भूकंपन आठों-याम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 3 !

    स्वार्थ में अँधा मानव करता, सागर के अन्दर विस्फोट |
    करे सुनामी पैदा खुद से, रहा मौत को हरदम पोट |
    विकिरण का खतरा बढ़ जाये, पहुंचा रहा चोट पे चोट |
    जियो और जीने दो भूला, चला छुपाता अपनी खोट |

    prabhavi panktiya
    lajavab
    rachana

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  6. अनेक बिंब..सार्थक चिंतन...सुंदर छंद प्रयोग।

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